अगर इतिहास के बीते वर्षो को देखे तो हम देखेंगे की इंसान ने सबसे ज्यादा जो खोया है वह है सृजनात्मक मन,सृजनात्मक होने का अर्थ अगर ठीक-ठीक लगाया जाये तो वो है सकारात्मक होना और सकारात्मक होने का अर्थ है जिन्दगी के प्रति सृजनात्मक द्रष्टि रखना। सृजनात्मक सिर्फ गीत,संगीत,कविता आदि नहीं है ये तो मन की ऐसी स्थिति है जिससे एकाग्रता,लगन, धर्य आदि आते है जिससे इसका निर्माण होता है। भाषा भारती पत्रिका कुछ ऐसे ही भाव लेकर आप के समक्ष उपस्थित हुई है। ये पत्रिका न सिर्फ हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी का एक स्तम्भ है बल्कि सृजन की ऐसी आधारशिला है जिससे हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओँ के उत्थान के लिए एक ऐसा सृजनात्मक द्दष्टिकोण विकसित होगा जो न सिर्फ हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओँ को पुष्ट करेगा बल्कि उन भाषाओ को एक दूसरे का पूरक भी बनाएगा। इससे भाषा की गुणवता तो बढ़ेगी ही उसकी गरिमा फिर से स्थापित होगी। आज के दौर में हिंदी को लेकर जो नकारात्मकता चल रही है उसे सकारात्मक मूल्यों के साथ अर्थवान बनाने के लिए हम प्रयासरत है । सिर्फ हिंदी ही बोली जाये ये सोच ले कर हम आप के बीच नहीं आये है बल्कि सारी दुनिया में हिन्दुस्तानी भाषाएं भी चहचहाये इस भावना के साथ आप के बीच आये है। हम चाहते है की हम सब की पत्रिका भाषा भारती ऐसी ज्योति प्रकाशित करें कि लोगों मे हिंदी भाषा की समग्रता का बोध हो और उन्हें विदेशी भाषा की दिमागी गुलामी से मुक्ति मिले। हम रूपांतरण करना चाहते है । हम चाहते है कि इस रूपांतरण में आप की भागेदारी सौ प्रतिशत हो। इसे आप अपना गांधी की तरह सामूहिक अहं बना ले तभी हिन्दुस्तानी भाषाओं को आजादी मिलेगी। यही हमारा भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए दृष्टिकोण है और यही लक्ष्य भी है। हम आने वाले समय में हिन्दुस्तानी भाषाओं के लिए एक ऐसा मंच देंगे जिस पर खड़े होकर हर बोली हर प्रांत का व्यक्ति हिन्दुस्तानी भाषाओं को विश्व पटल पर सितारों की तरह टांक देगा।