हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी में आपका स्वागत है |


सुधाकर पाठक
(अध्यक्ष)

सन्देश


हिंदी समेत संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल लगभग सभी भारतीय भाषाओं के उत्थान और प्रचार-प्रसार के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रही हैं। काफी गंभीरता से अध्ययन करने के बाद यह तथ्य सामने आया है कि इन संस्थाओं में समन्वय का अभाव है। इसका नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि कोई भी भारतीय भाषा एकमत से देश की संपर्क भाषा नहीं बन पाई। इसके दुष्परिणाम स्वरूप भारतीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी न केवल संपर्क भाषा बल्कि कानूनी भाषा बनकर देश का सिरमौर बन गई।

आज एक ऐसे मंच की जरूरत है जहां देश की सभी भारतीय भाषाएं एक दूसरे का हाथ थामे खड़ी दिखाई दे। इसी ध्येय को ध्यान में रखते हुए 'हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी' का गठन हुआ है। इस संस्था में सम्मिलित प्रत्येक सदस्य अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग संस्थाओं और मंचों के माध्यम से भारतीय भाषाओं के लिए कार्य करते रहे हैं। बहुत से साथी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी कर रहे है। किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सिर्फ आंदोलन और एकांगी प्रयास काफी नहीं होते, बल्कि उसे साकार करने के लिए जहां जमीनी स्तर पर ठोस कार्य करने की जरूरत होती है, वहीं समवेत प्रयास की भी आवश्यक होता है।

सर्वप्रथम आवश्यकता इस बात की है कि संपर्क भाषा के रूप में स्थापित भाषा ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए, साथ ही उसकी स्वीकार्यता भी व्यापक होनी चाहिए। जिस प्रकार मात्र पत्तों पर पानी डालने से पेड़ों की जड़ें मजबूत नहीं हो सकती, ठीक उसी तरह मात्र आंदोलन करने मात्र से कुछ सिद्ध होने वाला नहीं है। कोई उद्देश्य तभी सफल होता है जब आपके पास समस्याओं को उठाने के साथ उसका समाधान भी हो। आज आवश्यकता है कि क्षेत्रीय भाषाओँ के साथ सर्वमान्य बोलियों का संवर्धन और विकास किया जाए। उनके शब्दों का हिन्दी में प्रयोग करने के लिए तंत्र बनाए जाएं और तकनीकी शब्दावली विकसित की जाए। हिंदी सहित सभी प्रांतीय साहित्य का एक दूसरे की भाषा में अनुवाद करने के साथ ही एक मानक शब्दकोष बनाया जाए। इससे न केवल भारतीय भाषाओं में आपसी सामंजस्य, सहिष्णुता, सम्मान और सौहार्द बढ़ेगा, बल्कि एक दूसरे के साहित्य को पढ़ने और समझने का अवसर मिलेगा। मेरा तो यहां तक मानना है कि इन कार्यों से संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की स्वीकृति बढ़ेगी। इसके साथ ही सरकार को भाषा के स्तर पर सहयोग और सौहार्द बढ़ाने में मदद मिलेगी।

इस बात को मानने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि हिंदी की मजबूती के लिए कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है। बेवजह भाषा के नाम पर होने वाले आंदोलन की वजह से अहिंदी भाषी प्रान्तों में हिंदी की स्वीकार्यता कम हुई है। भाषाई कट्टरता से राजनीति तो की जा सकती है लेकिन उसकी स्वीकार्यता नहीं बढ़ाई जा सकती है। सम्पूर्ण भारत के भौगोलिक और राजनीतिक परिवेश को देखते हुए किसी भी भाषा की पूरे राष्ट्र में समुचित स्वीकार्यता के बिना उसे राष्ट्रभाषा बना पाना संभव नहीं दिखता है। यदि इस तरह का कोई प्रयास किया जाता है तो जिस प्रकार भारत जाति-धर्म और राजनीतिक रूप से बंटा दिखता है, आने वाले समय में भाषा के नाम पर भी इसी प्रकार का खतरा सामने आ सकता है | निस्संदेह, हिंदी आज भारत में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है, बस जरूरत इस बात की है कि इसकी स्वीकार्यता पूरे देश में हो और यह अंग्रेजी के स्थान पर भारत की संवैधानिक और कानूनी भाषा बने। जिस दिन हम इसे संपर्क भाषा बनाने में सफल हो गए, उस दिन इसे देश की राष्ट्रभाषा बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। देश की विभिन्न भाषाओँ को एक धागे में पिरोकर भारत को विश्व में सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाना ही 'हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी' का सर्वोपरि लक्ष्य है।

एक दृश्य

जिस देश के पास अपनी 22 संवैधानिक भाषाएं हों, जहां पर कोस-कोस पर पानी और चार कोस पर वाणी बदलने की बात कही जाती हो, जहां 179 भाषाएं और 544 बोलियां हों, भाषा के स्तर पर इतने समृद्ध होने के बावजूद उस देश का राज-काज यदि सात समंदर पार एक अदना से देश की भाषा अंग्रेजी में हो, तो फिर इस तथ्य पर मंथन होना चाहिए। भारतीय भाषाएं आज भी अपने ही देश में खुले आकाश में सांस लेने की बाट जोह रही हैं। हिन्दी को इसके वास्तविक स्थान पर स्थापित करने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि इसकी स्वीकार्यता व्यापक हो। इसके लिए हिन्दी को रोजगारपरक भाषा के रूप में स्थापित करना होगा। इसके साथ ही अनुवाद और मानकीकरण के माध्यम से हिंदी को और समृद्ध बनाना होगा।

कई सारी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रही हैं। लेकिन आपसी समन्वय नहीं होने की वजह से उनका प्रयास विफल होता रहा है। इनमें आपसी समन्वय स्थापित करने के लिए ही हिंदुस्तानी भाषा अकादमी का गठन किया गया है।

हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी भारत की एक ऐसी संस्था है जो हिन्दी समेत सभी हिन्दुस्तानी भाषाओं के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य कर रही है। यह संस्था हर भारतीय भाषा को उसका समुचित दर्जा और अधिकार दिलाने हेतु कटिबद्ध है। हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी भाषा के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों के साथ संवाद स्थापित कर रही है, ताकि भारतीय भाषाओं के विकास में आने वाली हर रुकावटों को दूर कर उसे वैश्विक स्तर पर आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया जाए।